फेफड़ो में इन्फेक्शन होने की वजह
lungs infection-
हमारे शरीर का एक बहुत ही ज़रूरी हिस्सा फेफड़े ही होते है,
जिससे हम साँस के ज़रिये औक्सीजन लेते है और ये ही ऑक्सीजन खून के साथ मिल कर हमारे पुरे शरीर तक पहुँचता है। हमारे शरीर में दो फेफड़े होते है जो श्वसन तंत्र का पार्ट होता है। ये हमारे नाक से ले कर ट्रेकिया लेरिंक्स से गुजरते हुए फेफड़ो तक पहुँचता है। लंग्स में बहुत ही छोटे छोटे एलवीराई होते है जिसकी मदद से हम औक्सीजन को अंदर की तरफ लेते है और कार्बनडाई औक्साइड बहार छोड़ते है। लेकिन जब कोई दूषित चीज़ हवा में मिल जाती है जैसे की – प्रदुषण की मात्रा बढ़ जाना , हवा में बैक्टीरिया का होना, कोई वाइरस का होना, फंगल इन्फेक्शन – ऐसे ही अगर हमे हवा के ज़रिये मिलते है तो इसकी वजह से फेफड़ो में इन्फेक्शन हो जाता है। जिससे हम lungs infection कहते है।
लंग्स इन्फेक्शन तो कभी भी हो सकता है।
ज़्यादा तर उम्र को देखा जाता है
क्युकी इन्फेक्शन बच्चो को या बुजुर्गो को ज़्यादा हो सकती है
पर अगर किसी को पहले से ही कोई बीमारी है या icu में एडमिट है, या डाइबिटीस है , HIV एड्स है , इसके अलावा अगर कोई ऑर्गन ट्रांसप्लांट हुवा है जैसे रीनल ट्रांसप्लांट के केस होते है। या किसी प्रकार का कैंसर हुआ है। ये सारी बीमारियाँ शरीर की रोग प्रतिरोग की क्षमता को कम करते है। जिससे की लंग्स इन्फेक्शन का खतरा अधिक बढ़ जाता है।

फेफड़ो में कितने प्रकार का इन्फेक्शन होता है? lungs infection
फेफड़ो में इन्फेक्शन चार प्रकार के होते है। –
(1) – वाइरल इन्फेक्शन
(2) – बैक्टीरियल इन्फेक्शन
(3) – पैरासिटिक इन्फेक्शन
(4) – फंगल इन्फेक्शन
1 – वाइरल इन्फेक्शन – जैसे की आज कल कोरोना की महामारी चल रही है जिससे बहुत लोगो की जान भी जा रही है। जिसमे की वाइरल निमोनिया होता है। जिससे हमारे लंग्स में बहुत ज़्यादा प्रभाव पड़ता है। जिसे कवीड निमोनिया या वाइरल निमोनिया कहा जाता है।
2 – बैक्टीरियल इन्फेक्शन – बैक्टीरिया जिसे जीवाणु भी कहते है
जैसे TB का भी बैक्टीरिया होता है जिससे छः रोग TB हो सकता है। निमोनिया हो सकता है और लंग्स के छोटे छोटे कॉर्ड बंद हो सकते है जिससे लंग्स काम करना बंद कर सकता है। इसमें लंग्स के बहार एक चिल्ली सी होती है जिसे लूरा भी कहा जाता है उसमे इन्फेक्शन हो जाता है जिससे की एम्पायमा की स्थिति हो जाता है।
3 – पैरासिटिक इन्फेक्शन – पैरासिटिक इन्फेक्शन में हेलमिंस ,एस्केरिस हो सकता है जो की हमारे लंग्स को ख़राब कर सकते है।
4 – फंगल इन्फेक्शन – कभी कभी फंगल इन्फेक्शन भी हो सकते है। और इसकी वजह फंगस होती है और फ्लू,टी बी,निमोनिया,ब्रांगकाईटिस की जैसी इन्फेक्शन लंग्स में देखे जाते है।
लंग्स इन्फेक्शन के लक्षण
जब भी किसी को lungs infection होता है तो बलगम, खांसी,साँसो का फूलना, जुकाम,छींक का आना, नाक बंद रहना या नाक से पानी आना ,कभी कभी सीने में दर्द या जकड़न की भी समस्या होती है। कभी गले में दर्द ,घरघराहट व सर में दर्द भी हो सकता है।
लंग्स में इन्फेक्शन के कारण
lungs infection होने के दो कारण होते है (1) – बैक्टीरिया (2) वाइरस
फेफड़ो का इन्फेक्शन एक इंसान से दूसरे इंसान तक फैल सकता है
इसमें मरीज के खांसने छींकने और हवा के ज़रिये फैलते है
और एक इंसान से दूसरे इंसान में पहुंच सकते है।
ज़्यादा तर फेफड़ो में इंफेक्शन का खतरा अधिक तब बढ़ जाता है जब कोई धूम्रपान करे या एल्कोहल लेता हो अगर एक साथ बहुत से लोग धूम्रपान करते है तो भी एक से दूसरे को इन्फेक्शन का खतरा बढ़ जाता है। अगर किसी को पहले से lungs infection है तो उसके जरिये दूसरे को भी हो सकता है। इसके अलावा अगर किसी वक्ति की रोग प्रतिरोग की क्षमता कम है तो जैसे HIV एड्स का मरीज है या मरीज को पहले से डाइबिटीज है तो ऐसे लोगो को इन्फेक्शन का खतरा बढ़ जाता है।
इन्फेक्शन का शिकार ज़्यादा तर छोटे बच्चे या बुजुर्ग लोग ज़्यादा होते है।
अगर कोई सर्जरी हुई है तो पोस्ट ऑपरेटिव केस में या फिर ट्रॉमा का केस है
तो इसमें भी फेफड़ो का इन्फेक्शन अधिक बढ़ जाता है। डस्ट धूल या धुवा या कई कम्पनियों से निकलने वाला धुवा हमारे फेफड़ो में इन्फेक्शन के खतरों को बढ़ाते है। और lungs infection के कारण बनता है।
कोरोना वाइरस से फेफड़े क्यों ख़राब होते है?
जब कोई इंसान खासता है तो उसके मुँह से 3000 से ज़्यादा सलाइवा ड्रॉप्लेट्स निकलती है
और जब इंसान छीकता है तो 40000 ड्रॉप्लेट्स निकलती है।
पर बड़ी बात ये है की इन 40000 में से सिर्फ एक सलाइवा ड्रॉप्लेट्स में ही लगभग 20 लाख कोरोना वाइरस तक हो सकते है। और जब ये ड्रॉप्लेट्स निकलती है तो करीब 300 किलोमीटर की गति से 1 मीटर दूर तक जा सकती है। इसलिए आपको कहा जाता है की कम से कम 2 मीटर की दुरी बना कर रखो। जिससे की किसी के छींकने से निलकने वाला सलाइवा ड्रॉप्लेट्स आप तक नहीं पहुंचेगी।
पर सोचने वाली बात ये है की क्या कोरोना वाइरस हवा में भी तैर सकता है?
– तो आपको बता दे की हा कोरोना वाइरस हवा में कुछ देर तक फ्लोट कर सकता है पर कुछ वजह के साथ ऐसा तब हो सकता है जब डस्ट के पार्टिकल पहले से हवा में तैर रहे हो जो हमे दिखाई भी नहीं देते। फिर ये कोरोना वाइरस इन डस्ट के पार्टिकल में जा कर बैठ जाते है और जब कोई इंसान वह से गुजरता है तो इन्हे इन्हेल कर लेता है और इन्फेक्टेड हो जाता है।
और दूसरा वजह भी जान लेते है –
जब कोरोना वाइरस को कोई डस्ट पार्टिकल नहीं मिलता है
तो ये आस पास के सरफेस पर जा कर चिपक जाता है जैसे –
कोरोना वाइरस किसी भी ग्लास पर 96 घंटे तक रह सकता है। प्लास्टिक और स्टील पर 72 घंटे तक रह सकता है। कार्डबोड पर 24 घंटे तक रह सकता है। अब इस टाइम के दौरान कोई इंसान किसी ऐसे सरफेस कोई छूता है फिर अपने आँख नाक या मुँह पर हाथ लगता है तो ये कोरोना वाइरस उस इंसान के शरीर पर चला जाता है।
कोरोना वाइरस लंग्स को कैसे नुकसान पहुंचाते है? lungs infection
हर इंसान के पास दो लंग्स होते है
ऑक्सीजन आपके लंग्स में ब्रोंकाइ से होता हुआ अनगिनत ब्रोन्कियोस में जाता है
फिर यहाँ से ऑक्सीजन एल्बियोलाइन तक पहुंचते है।
एल्बियोलाइन ही वो जगह होती है जहा हमारे शरीर ऑक्सीजन और कार्बनडाई औक्साइड बदलते है। इंसान के लंग्स में कुल 60 करोड़ एल्बियोलाइन होती है और ये एल्बियोलाइन बहुत ज़्यादा पतली और नाजुक होती है। जब हम साँस लेते है तो ये एल्बियोलाइन फूल जाती है और साँस छोड़ते है तो ये सुकड़ जाती है।
ये एल्बियोलाइन पूरी तरह से केप्लरीस से या कोशिकाओं से घिरी हुई होती है।
इन कोशिकाओं में खून बहता है पर आपको ये जान कर हैरत होगा की इन एल्बियोलाइन और केप्लरीस इतनी पतली होती है की इसमें ऑक्सीजन और कार्बनडाई औक्साइड भी आर पार कर सकते है। ये पूरा बहुत से सेल्स से बना हुआ होता है।
हमारे शरीर का सबसे छोटा भाग ये सेल्स ही होते है।
हमारा शरीर कुल 37 लाख करोड़ सेल्स मेमरोंन से मिल कर बना हुआ है।
जब ये कोरोना वाइरस हमारे सेल्स मेमरोंन में घुस जाता है
तो फिर वो अपने करोडो कोरोना वाइरस की कॉपी बना लेता है
और इंसान को इन्फेक्ट कर देता है। कोरोना वाइरस इन सेल्स की ऊपरी परत पर ही अटेक करता है क्युकी लंग्स के सेल्स पर (S 2 रिसेप्टर) पाया जाता है। ये सिर्फ लंग्स में ही पाया जाता है। कोरोना वाइरस के सेल्स पर जिस तरह के काटे लगे होते है ठीक वैसे ही लंग्स के सेल्स पर भी काटे लगे हुवे होते है। (कोरोना वाइरस के काटो को स्पाइक प्रोटीन कहा जाता है और सेल्स के ऊपर लगे काटो को S 2 रिसेप्टर कहा जाता है)
वाइरस की काम करने की प्रक्रिया
लंग्स के सेल्स के अंदर हर कोई नहीं जा पाता पर कुछ कुछ ही जा पाते है
जैसे प्रोटीन सेल्स के अंदर जा सकते है
वैसे ही सेल्स के अंदर जो वेस्ट पार्ट होगा वो बहार निकल जाता है
अब इसी मे कोरोना वाइरस जा कर चिपक जाता है
और हमारा सेल्स के जो काटे है वो इन्हे प्रोटोन समझ कर सेल्स के अंदर जाने दे देता है। एक बार कोरोना वाइरस सेल्स के अंदर चले जाए फिर वो सेल्स को अपनी बहुत सारी कॉपीस बनाने के काम में लगा देता है और हमारा सेल्स कोरोना वाइरस के करोडो कॉपी बना देता है और खुद मर जाता है , इस प्रक्रिया में 1 हफ्ते का समय भी लग सकता है।
जब ये कोरोना वाइरस और सेल्स में फैलता है
तो हमारे शरीर का इम्मून सिस्टम भी हरकत में आ जाता है
और इन वाइरस को ख़तम करने के काम में लग जाता है। और शरीर का ताप को बढ़ा देता है जिससे की वाइरस कम हो जाए इसलिए हमे बुखार भी आता है क्युकी हमारा इम्मून सिस्टम वाइरस से लड़ रहा होता है।
साँस लेने में परेशानी होना -lungs infection
जैसा की हमने पहले ही बताया है
की कोरोना वाइरस सेल्स के अंदर जाने के बाद अपनी करोडो कॉपी बनाते चला जाता है जिससे जी हमारा सेल्स एक समय बाद खुद को ही मर देता है या कह सकते है की सेल्स का नस्ट हो जाना। ऐसे ही लाखो सेल्स के नस्ट हो जाने से हमारे फेफड़ो में पस जमा होने लगता है और ये पस एल्बियोलाइन में जमा होने लगता है जहा पर ऑक्सीजन और कार्बनडाई औक्साइड का आदान प्रदान होता है इन्ही के बिच में ये पस जमा होने लगता है,
जिसकी वजह से ऑक्सीजन और कार्बनडाई औक्साइड आगे नहीं जा पाते
और साँस लेने में परेशानी होने लगती है।
और साँस फूलती है और कई बार ऑक्सीजन न जाने से इंसान मर भी जाता है।
कोरोना वाइरस के दूसरे पोस्ट में हम जानेगे की covid -19 में होम आइसोलेट होने पर क्या क्या सावधानिया रखनी चाहिए।
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